धीरूभाई अंबानी ने क्यों बैन करवाई ये किताब : कहानी और उसके पीछे के राज़

धीरूभाई अंबानी का नाम भारतीय उद्योग जगत में एक ऐसे व्यक्ति के रूप में लिया जाता है, जिन्होंने अपनी मेहनत और दिमाग के बल पर एक बड़ा साम्राज्य खड़ा किया। हमिश मैकडॉनल्ड की किताब "द पॉलिएस्टर प्रिंस: द राइज़ ऑफ़ धीरूभाई अंबानी" उनकी कहानी के कुछ ऐसे पहलुओं को उजागर करती है जो उनकी सफलता के साथ-साथ कुछ विवादों को भी दर्शाते हैं। यही वो किताब है जिसे अंबानी ने भारत में प्रकाशित होने से रोका था, और इसके कई कारण थे। आइए, इस किताब के कुछ चर्चित पहलुओं पर नज़र डालते हैं जो इसके बैन होने का कारण बने।


The Book Banned By Dhirubhai Ambani
The Book Banned By Dhirubhai Ambani


1. चोरवाड़ से शुरुआत और सफलता का आगाज


धीरूभाई अंबानी एक छोटे से गाँव चोरवाड़, गुजरात से आए और अपनी मेहनत से मुंबई में अपना कद जमाया। किताब ये दर्शाती है कि कैसे उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक अपने कनेक्शन बनाए और एक सपने को हकीकत में बदलने के लिए अपना सफर शुरू किया।


2. पॉलिएस्टर बिज़नेस में मोनोपोली क़ायम करना


धीरूभाई अंबानी ने पॉलिएस्टर और टेक्सटाइल इंडस्ट्री में अपना एक अलग नाम बनाया और मोनोपोली स्थापित की। किताब में उनके आक्रामक रणनीतियों और कैसे उन्होंने प्रतिस्पर्धियों के साथ टक्कर लेकर अपना साम्राज्य बनाया, इन सब पर रोशनी डाली गई है। ये आक्रामक तरीके और प्रतिस्पर्धियों को पीछे छोड़ने की तकनीक किताब का एक चर्चित पहलू है।


3. राजनीतिक संपर्क और बिज़नेस विस्तार

धीरूभाई अंबानी का राजनीतिक संपर्क का इस्तेमाल उनकी सफलता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस किताब में लिखा गया है कि कैसे अंबानी ने राजनीतिक ताकत और ब्यूरोक्रेसी का सहारा लेकर अपने बिज़नेस इंटरेस्ट्स को सुरक्षित किया। ये राजनीतिक कनेक्शन और लॉबिंग के कुछ किस्से उनके साम्राज्य के विकास में बहुत मददगार रहे, लेकिन यही विवाद का कारण भी बने।


4. सिक्कों को गलाने का रहस्य


किताब में एक और दिलचस्प और विवादास्पद कहानी है, जो उनके सिक्कों को गलाने के तरीके से जुड़ी है। कहा जाता है कि पॉलिएस्टर बिज़नेस के लिए कच्चे माल की कमी के कारण, अंबानी ने छोटी denomination के सिक्के इकट्ठे किए और उनको गला कर चांदी और निकल के रूप में अपने काम में इस्तेमाल किया। ये एक असामान्य और जोखिम भरा तरीका था, जो अंबानी की resourcefulness और जोखिम उठाने की क्षमता को दर्शाता है, लेकिन यही विवाद का कारण भी बना।


5. मीडिया और लीगल बैटल का सामना


धीरूभाई अंबानी और उनके प्रतिद्वंद्वी नुस्ली वाडिया के बीच की तनातनी और उनकी कानूनी लड़ाइयाँ भी किताब का एक प्रमुख हिस्सा हैं। मीडिया के साथ उनके जटिल संबंध और उनके बिज़नेस पर उठाए गए कानूनी सवालों का भी जिक्र है। ये सभी घटनाएँ उनके सफर के चुनौतीपूर्ण पहलुओं को दर्शाती हैं और दिखाती हैं कि कैसे उन्होंने हर मुश्किल का सामना किया।


6. लेगेसी और आज का प्रभाव

आज भी धीरूभाई अंबानी की कहानी एक मिसाल है। उनके बेटों ने उनके साम्राज्य को नए स्तर पर पहुँचा दिया है और उनकी कहानी आज भी नई पीढ़ी के उद्यमियों को प्रेरित करती है। उनकी लेगेसी आज भी भारत के कॉर्पोरेट कल्चर पर एक गहरा प्रभाव डालती है .


डिस्क्लेमर:

ये लेख हमिश मैकडॉनल्ड की किताब "द पॉलिएस्टर प्रिंस: द राइज़ ऑफ़ धीरूभाई अंबानी" के कुछ अंश और चर्चित घटनाओं पर आधारित है। इसमें दिए गए तथ्य और विचार किताब में व्यक्त किए गए हैं और इनका हमारे व्यक्तिगत विचारों से कोई संबंध नहीं है।


Comments